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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 1: बाल काण्ड
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सर्ग 33: राजा कुशनाभ द्वारा कन्याओं के धैर्य एवं क्षमाशीलता की प्रशंसा, ब्रह्मदत्त की उत्पत्ति,कुशनाभ की कन्याओं का विवाह
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श्लोक 20
श्लोक
1.33.20
स बुद्धिं कृतवान् राजा कुशनाभ: सुधार्मिक:।
ब्रह्मदत्ताय काकुत्स्थ दातुं कन्याशतं तदा॥ २०॥
अनुवाद
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काकुत्स्थकुल के आभूषण, श्रीराम ! तब परम धर्मात्मा राजा कुशनाभ ने ब्रह्मदत्त को अपनी सौ कन्याएँ देने का निश्चय किया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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