श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 33: राजा कुशनाभ द्वारा कन्याओं के धैर्य एवं क्षमाशीलता की प्रशंसा, ब्रह्मदत्त की उत्पत्ति,कुशनाभ की कन्याओं का विवाह  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  1.33.2 
 
 
वायु: सर्वात्मको राजन् प्रधर्षयितुमिच्छति।
अशुभं मार्गमास्थाय न धर्मं प्रत्यवेक्षते॥ २॥
 
 
अनुवाद
 
  राजन! वायुदेव सर्वत्र विचरण करने में सक्षम हैं। उन्होंने हमारे ऊपर बलपूर्वक अधिकार करने का प्रयास किया। उनका धर्म पर ध्यान नहीं था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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