श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 33: राजा कुशनाभ द्वारा कन्याओं के धैर्य एवं क्षमाशीलता की प्रशंसा, ब्रह्मदत्त की उत्पत्ति,कुशनाभ की कन्याओं का विवाह  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  1.33.19 
 
 
स राजा ब्रह्मदत्तस्तु पुरीमध्यवसत् तदा।
काम्पिल्यां परया लक्ष्म्या देवराजो यथा दिवम्॥ १९॥
 
 
अनुवाद
 
  (जब कुशनाभ के यहाँ कन्याओं के विवाह का विचार चल रहा था) उस समय राजा ब्रह्मदत्त उत्तम ऐश्वर्य से सम्पन्न होकर काम्पिल्य नगरी में उसी प्रकार निवास करते थे, जैसे स्वर्ग की अमरावती नगरी में देवराज इंद्र निवास करते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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