श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 33: राजा कुशनाभ द्वारा कन्याओं के धैर्य एवं क्षमाशीलता की प्रशंसा, ब्रह्मदत्त की उत्पत्ति,कुशनाभ की कन्याओं का विवाह  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  1.33.18 
 
 
तस्या: प्रसन्नो ब्रह्मर्षिर्ददौ ब्राह्ममनुत्तमम्।
ब्रह्मदत्त इति ख्यातं मानसं चूलिन: सुतम्॥ १८॥
 
 
अनुवाद
 
  उस गन्धर्वकन्याकी सेवासे संतुष्ट हुए ब्रह्मर्षि चूलीने उसे परम उत्तम ब्राह्म तपसे सम्पन्न पुत्र प्रदान किया। वह उनके मानसिक संकल्पसे प्रकट हुआ मानस पुत्र था। उसका नाम ‘ब्रह्मदत्त’ हुआ॥ १८॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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