अपतिश्चास्मि भद्रं ते भार्या चास्मि न कस्यचित् ।
ब्राह्मेणोपगतायाश्च दातुमर्हसि मे सुतम्॥ १७॥
अनुवाद
मुनिवर! आपका कल्याण हो, मैं अपति हूं अर्थात मेरा कोई पति नहीं है। न मैं कभी किसी की पत्नी रही हूं और न आगे रहूंगी। मैं आपकी सेवा में आई हूं अतः आप अपने तपोबल से एक पुत्र का आशीर्वाद मुझे दें।