श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 33: राजा कुशनाभ द्वारा कन्याओं के धैर्य एवं क्षमाशीलता की प्रशंसा, ब्रह्मदत्त की उत्पत्ति,कुशनाभ की कन्याओं का विवाह  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  1.33.17 
 
 
अपतिश्चास्मि भद्रं ते भार्या चास्मि न कस्यचित् ।
ब्राह्मेणोपगतायाश्च दातुमर्हसि मे सुतम्॥ १७॥
 
 
अनुवाद
 
  मुनिवर! आपका कल्याण हो, मैं अपति हूं अर्थात मेरा कोई पति नहीं है। न मैं कभी किसी की पत्नी रही हूं और न आगे रहूंगी। मैं आपकी सेवा में आई हूं अतः आप अपने तपोबल से एक पुत्र का आशीर्वाद मुझे दें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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