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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 1: बाल काण्ड
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सर्ग 33: राजा कुशनाभ द्वारा कन्याओं के धैर्य एवं क्षमाशीलता की प्रशंसा, ब्रह्मदत्त की उत्पत्ति,कुशनाभ की कन्याओं का विवाह
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श्लोक 16
श्लोक
1.33.16
लक्ष्म्या समुदितो ब्राह्मॺा ब्रह्मभूतो महातपा:।
ब्राह्मेण तपसा युक्तं पुत्रमिच्छामि धार्मिकम्॥ १६॥
अनुवाद
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लक्ष्मीपते! आप ब्रह्मतेज के साथ-साथ ब्रह्मस्वरूप हो गये हैं, अतएव आप महान तपस्वी हैं। मैं आपसे ब्रह्मज्ञान और वेदों के अनुसार तप से युक्त धर्मात्मा पुत्र पाने की इच्छा रखती हूँ।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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