श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 33: राजा कुशनाभ द्वारा कन्याओं के धैर्य एवं क्षमाशीलता की प्रशंसा, ब्रह्मदत्त की उत्पत्ति,कुशनाभ की कन्याओं का विवाह  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  1.33.14 
 
 
स च तां कालयोगेन प्रोवाच रघुनन्दन।
परितुष्टोऽस्मि भद्रं ते किं करोमि तव प्रियम्॥ १४॥
 
 
अनुवाद
 
  रघुनन्दन! समय अनुकूल होने पर चूली ने उस गंधर्व कन्या से कहा - "शुभे! तुम्हारा कल्याण हो, मैं तुमसे अत्यंत प्रसन्न हूँ। बताओ, तुम्हारा कौन-सा प्रिय कार्य मैं पूरा करूँ?"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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