स च तां कालयोगेन प्रोवाच रघुनन्दन।
परितुष्टोऽस्मि भद्रं ते किं करोमि तव प्रियम्॥ १४॥
अनुवाद
रघुनन्दन! समय अनुकूल होने पर चूली ने उस गंधर्व कन्या से कहा - "शुभे! तुम्हारा कल्याण हो, मैं तुमसे अत्यंत प्रसन्न हूँ। बताओ, तुम्हारा कौन-सा प्रिय कार्य मैं पूरा करूँ?"