श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 33: राजा कुशनाभ द्वारा कन्याओं के धैर्य एवं क्षमाशीलता की प्रशंसा, ब्रह्मदत्त की उत्पत्ति,कुशनाभ की कन्याओं का विवाह  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  1.33.13 
 
 
सा च तं प्रणता भूत्वा शुश्रूषणपरायणा।
उवास काले धर्मिष्ठा तस्यास्तुष्टोऽभवद् गुरु:॥ १३॥
 
 
अनुवाद
 
  वह प्रतिदिन मुनि को प्रणाम करके उनके सेवा कार्यों में सहायक रहती थी, साथ ही धर्म में स्थित रहकर जरूरत के अनुसार समय-समय पर उपस्थित होती थी। इस प्रकार उसने सेवा के द्वारा उस गौरवशाली मुनि को बहुत संतुष्ट कर दिया था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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