श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 33: राजा कुशनाभ द्वारा कन्याओं के धैर्य एवं क्षमाशीलता की प्रशंसा, ब्रह्मदत्त की उत्पत्ति,कुशनाभ की कन्याओं का विवाह  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  1.33.12 
 
 
तपस्यन्तमृषिं तत्र गन्धर्वी पर्युपासते।
सोमदा नाम भद्रं ते ऊर्मिलातनया तदा॥ १२॥
 
 
अनुवाद
 
  श्रीराम! तुम्हारा कल्याण हो। उस समय एक गन्धर्व कन्या वहाँ रहकर उस तपस्वी मुनि की उपासना (अनुग्रह की इच्छा से सेवा) कर रही थी। उसका नाम सोमदा था, और वह ऊर्मिला की पुत्री थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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