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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 1: बाल काण्ड
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सर्ग 31: श्रीराम, लक्ष्मण तथा ऋषियों सहित विश्वामित्र का मिथिला को प्रस्थान तथा मार्ग में संध्या के समय शोणभद्र तट पर विश्राम
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श्लोक 8
श्लोक
1.31.8
तद्धि पूर्वं नरश्रेष्ठ दत्तं सदसि दैवतै:।
अप्रमेयबलं घोरं मखे परमभास्वरम्॥ ८॥
अनुवाद
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पुरुषश्रेष्ठ! प्राचीन काल में एक बार देवताओं ने जनक के किसी पूर्वज को उपहार स्वरूप एक धनुष दिया था। वह धनुष अत्यंत शक्तिशाली और वजनदार है। इसकी शक्ति का कोई माप-तोल नहीं है। वह धनुष अत्यंत प्रकाशमान और भयानक है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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