श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 31: श्रीराम, लक्ष्मण तथा ऋषियों सहित विश्वामित्र का मिथिला को प्रस्थान तथा मार्ग में संध्या के समय शोणभद्र तट पर विश्राम  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  1.31.13 
 
 
आयागभूतं नृपतेस्तस्य वेश्मनि राघव।
अर्चितं विविधैर्गन्धैर्धूपैश्चागुरुगन्धिभि:॥ १३॥
 
 
अनुवाद
 
  रघुनन्दन! राजा जनक के राजमहल में वह धनुष पूजनीय देवता के समान प्रतिष्ठित है और नाना प्रकार के गंध, धूप तथा अगर आदि सुगंधित पदार्थों से उसकी पूजा होती है॥ १३॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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