लक्ष्मण से ये कहकर रघुनंदन श्रीराम ने अपनी हाथ की फुर्ती दिखाते हुए तुरंत ही एक विशाल अग्निबाण का निर्माण किया और उसे सुबाहु की छाती पर चला दिया। उस बाण लगने मात्र से ही वह मरकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। फिर प्रख्यात यशस्वी और अत्यंत उदार रघुवीर ने वायव्यास्त्र लेकर शेष राक्षसों का भी संहार कर दिया और ऋषियों को परम आनंद प्रदान किया।