श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 30: श्रीराम द्वारा विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा तथा राक्षसों का संहार  »  श्लोक 22-23
 
 
श्लोक  1.30.22-23 
 
 
इत्युक्त्वा लक्ष्मणं चाशु लाघवं दर्शयन्निव।
विगृह्य सुमहच्चास्त्रमाग्नेयं रघुनन्दन:॥ २२॥
सुबाहूरसि चिक्षेप स विद्ध: प्रापतद् भुवि।
शेषान् वायव्यमादाय निजघान महायशा:।
राघव: परमोदारो मुनीनां मुदमावहन्॥ २३॥
 
 
अनुवाद
 
  लक्ष्मण से ये कहकर रघुनंदन श्रीराम ने अपनी हाथ की फुर्ती दिखाते हुए तुरंत ही एक विशाल अग्निबाण का निर्माण किया और उसे सुबाहु की छाती पर चला दिया। उस बाण लगने मात्र से ही वह मरकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। फिर प्रख्यात यशस्वी और अत्यंत उदार रघुवीर ने वायव्यास्त्र लेकर शेष राक्षसों का भी संहार कर दिया और ऋषियों को परम आनंद प्रदान किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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