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सर्ग 30: श्रीराम द्वारा विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा तथा राक्षसों का संहार
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श्लोक 10
श्लोक
1.30.10
मन्त्रवच्च यथान्यायं यज्ञोऽसौ सम्प्रवर्तते।
आकाशे च महान् शब्द: प्रादुरासीद् भयानक:॥ १०॥
अनुवाद
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तब तो शास्त्रों की विधि के अनुसार वेद-मंत्रों का उच्चारण करके उस यज्ञ का कार्य आरम्भ हुआ। उसी समय आकाश में बहुत ज़ोर का शब्द हुआ, जो सुनने में बेहद भयभीत करने वाला था।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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