कामार्थगुणसंयुक्तं धर्मार्थगुणविस्तरम्।
समुद्रमिव रत्नाढॺं सर्वश्रुतिमनोहरम्॥ ८॥
स यथा कथितं पूर्वं नारदेन महात्मना।
रघुवंशस्य चरितं चकार भगवान् मुनि:॥ ९॥
अनुवाद
महान नारदजी द्वारा पूर्व में वर्णित तरीके से ही भगवान वाल्मीकि मुनि ने रघुवंश के आभूषण श्री राम के चरित्र से संबंधित रामायण काव्य का निर्माण किया। जैसे समुद्र सभी रत्नों का भंडार है, उसी प्रकार यह महाकाव्य गुण, अलंकार और ध्वनि आदि रत्नों का भंडार है। इतना ही नहीं, यह सभी श्रुतियों के सारभूत अर्थ का प्रतिपादन करने के कारण सभी के कानों को प्रिय लगने वाला और सभी के चित्त को आकर्षित करने वाला है। यह धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष रूपी गुणों (फलों) से युक्त है और इनका विस्तारपूर्वक प्रतिपादन और दान करता है।