स्त्रीतृतीयेन च तथा यत् प्राप्तं चरता वने।
सत्यसंधेन रामेण तत् सर्वं चान्ववैक्षत॥ ५॥
अनुवाद
वन में विचरण करते हुए सत्यप्रतिज्ञ श्रीरामचन्द्रजी ने लक्ष्मण और सीता के साथ जो-जो लीलाएँ की थीं, वे सब उनकी दृष्टि में आ गयीं। उन्होंने उस तृतीय वर्ष में वन में बिताए अपने समय को याद किया और उन सभी अनुभवों को फिर से महसूस किया।