श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 3: वाल्मीकि मुनि द्वारा रामायण काव्य में निबद्ध विषयों का संक्षेप से उल्लेख  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  1.3.5 
 
 
स्त्रीतृतीयेन च तथा यत् प्राप्तं चरता वने।
सत्यसंधेन रामेण तत् सर्वं चान्ववैक्षत॥ ५॥
 
 
अनुवाद
 
  वन में विचरण करते हुए सत्यप्रतिज्ञ श्रीरामचन्द्रजी ने लक्ष्मण और सीता के साथ जो-जो लीलाएँ की थीं, वे सब उनकी दृष्टि में आ गयीं। उन्होंने उस तृतीय वर्ष में वन में बिताए अपने समय को याद किया और उन सभी अनुभवों को फिर से महसूस किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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