सत्यवन्तं सत्यकीर्तिं धृष्टं रभसमेव च।
प्रतिहारतरं नाम पराङ्मुखमवाङ्मुखम्॥ ४॥
लक्ष्यालक्ष्याविमौ चैव दृढनाभसुनाभकौ।
दशाक्षशतवक्त्रौ च दशशीर्षशतोदरौ॥ ५॥
पद्मनाभमहानाभौ दुन्दुनाभस्वनाभकौ।
ज्योतिषं शकुनं चैव नैरास्यविमलावुभौ॥ ६॥
यौगंधरविनिद्रौ च दैत्यप्रमथनौ तथा।
शुचिबाहुर्महाबाहुर्निष्कलिर्विरुचस्तथा।
सार्चिमाली धृतिर्माली वृत्तिमान् रुचिरस्तथा॥ ७॥
पित्र्य: सौमनसश्चैव विधूतमकरावुभौ।
परवीरं रतिं चैव धनधान्यौ च राघव॥ ८॥
कामरूपं कामरुचिं मोहमावरणं तथा।
जृम्भकं सर्पनाथं च पन्थानवरुणौ तथा॥ ९॥
कृशाश्वतनयान् राम भास्वरान् कामरूपिण:।
प्रतीच्छ मम भद्रं ते पात्रभूतोऽसि राघव॥ १०॥
अनुवाद
तत्पश्चात वे बोले - ‘रघुकुल नायक राम! तुम्हारा कल्याण हो! तुम अस्त्र विद्या के उपयुक्त पात्र हो; इसलिए निम्नलिखित अस्त्रों को भी ग्रहण करो - सत्यवान, सत्य कीर्ति, धृष्ट, रभस, प्रतिहारतर, प्रामख, अवाङ्मख, लक्ष्य, अलक्ष्य, दृढ़नाभ, सुनाभ, दशाक्ष, शतवक्त्र, दशशीर्ष, शतोदर, पद्मनाभ, महानाभ, दुन्दुनाभ, स्वनाभ, ज्योतिष, शकुन, नैरास्य, विमल, दैत्यनाशक यौगंधर और विनिद्र, शुचिबाहु, महाबाहु, निष्कलि, विरुच, सार्चिमाली, धृतिर्माली, वृत्तिमान्, रुचिर, पित्र्य, सौमनस, विधूत, मकर, परवीर, रति, धन, धान्य, कामरूप, कामरुचि, मोह, आवरण, जृम्भक, सर्पनाथ, पन्थान और वरुण - ये सभी प्रजापति कृशाश्व के पुत्र हैं। ये इच्छानुसार रूप धारण करने वाले तथा परम तेजस्वी हैं। तुम इन्हें ग्रहण करो’।