श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 28: विश्वामित्र का श्रीराम को अस्त्रों की संहारविधि बताना,अस्त्रों का उपदेश करना, श्रीराम का आश्रम एवं यज्ञस्थान के विषय में प्रश्न  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  1.28.2 
 
 
गृहीतास्त्रोऽस्मि भगवन् दुराधर्ष: सुरैरपि।
अस्त्राणां त्वहमिच्छामि संहारान् मुनिपुंगव॥ २॥
 
 
अनुवाद
 
  भृगु नंदन शुक्राचार्य जी ने कहा- हे भगवान! आपकी कृपा से मैंने ये अस्त्र ग्रहण कर लिए हैं और अब मैं देवताओं के लिए भी दुर्जेय हो गया हूँ। मुनियों में श्रेष्ठ! अब मैं इन अस्त्रों को संहार करने की विधि जानना चाहता हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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