श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 22: दशरथ का स्वस्तिवाचन पूर्वक राम-लक्ष्मण को मुनि के साथ भेजना, विश्वामित्र से बला और अतिबला नामक विद्या की प्राप्ति  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  1.22.24 
 
 
दशरथनृपसूनुसत्तमाभ्यां
तृणशयनेऽनुचिते तदोषिताभ्याम्।
कुशिकसुतवचोऽनुलालिताभ्यां
सुखमिव सा विबभौ विभावरी च॥ २४॥
 
 
अनुवाद
 
  राजा दशरथ के वे दोनों श्रेष्ठ राजकुमार उस समय घास के बिस्तर पर लेटे हुए थे, जो उनके योग्य नहीं था। महर्षि विश्वामित्र अपने मधुर वचनों से उन्हें प्यार और दुलार दे रहे थे, जिससे उन्हें लग रहा था कि वह रात बहुत सुखद है।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये बालकाण्डे द्वाविंश: सर्ग:॥ २२॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके बालकाण्डमें बाईसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ २२॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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