श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 22: दशरथ का स्वस्तिवाचन पूर्वक राम-लक्ष्मण को मुनि के साथ भेजना, विश्वामित्र से बला और अतिबला नामक विद्या की प्राप्ति  »  श्लोक 20-21h
 
 
श्लोक  1.22.20-21h 
 
 
प्रदातुं तव काकुत्स्थ सदृशस्त्वं हि पार्थिव।
कामं बहुगुणा: सर्वे त्वय्येते नात्र संशय:॥ २०॥
तपसा सम्भृते चैते बहुरूपे भविष्यत:।
 
 
अनुवाद
 
  “हे ककुत्स्थ नन्दन! मैंने इन दोनों विद्याओं को तुम्हें देने का सोचा है। राजकुमार! तुम ही इसके उपयुक्त पात्र हो। हालाँकि इस विद्या को प्राप्त करने योग्य तुम्हारे अंदर अनेक गुण हैं, या यह भी कह सकते हैं कि सभी श्रेष्ठ गुण तुममें विद्यमान हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है। फिर भी मैंने तपोबल से इनका अर्जन किया है। इसलिए मेरी तपस्या से परिपूर्ण होकर ये तुम्हारे लिए बहुरूपिणी होंगी और विविध प्रकार से फल प्रदान करेंगी।”
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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