क्षुत्पिपासे न ते राम भविष्येते नरोत्तम।
बलामतिबलां चैव पठतस्तात राघव॥ १८॥
गृहाण सर्वलोकस्य गुप्तये रघुनन्दन।
अनुवाद
‘नरश्रेष्ठ श्रीराम! तात रघुनन्दन! बला और अतिबला के अभ्यास से न केवल तुम बलशाली बनोगे, बल्कि तुम्हें भूख-प्यास का भी कष्ट नहीं होगा; अतः रघुकुल को आनन्दित करने वाले राम! तुम सम्पूर्ण जगत् की रक्षा के लिये इन दोनों विद्याओं को ग्रहण करो।