तथा वसिष्ठे ब्रुवति राजा दशरथ: स्वयम्।
प्रहृष्टवदनो राममाजुहाव सलक्ष्मणम्॥ १॥
कृतस्वस्त्ययनं मात्रा पित्रा दशरथेन च।
पुरोधसा वसिष्ठेन मंगलैरभिमन्त्रितम्॥ २॥
अनुवाद
वसिष्ठ जी के ऐसा कहने पर राजा दशरथ का मुख प्रसन्नता से खिल उठा। उन्होंने स्वयं ही लक्ष्मण सहित श्री राम को अपने पास बुलाया। फिर माता कौशल्या, पिता दशरथ और पुरोहित वसिष्ठ ने स्वस्तिवाचन करने के पश्चात् उनका यात्रा सम्बन्धी मंगल कार्य सम्पन्न किया–श्री राम को मंगलसूचक मंत्रों से अभिमंत्रित किया गया॥ १-२॥