वर्षेणैवागतं विप्रं तापसं स नराधिप:।
प्रत्युद्गम्य मुनिं प्रह्व: शिरसा च महीं गत:॥ ३०॥
अनुवाद
वर्षा ऋतु के आगमन से ही राजा ने अनुमान लगा लिया कि तपस्वी ब्राह्मणकुमार आ गए हैं। तब राजा ने बड़ी विनम्रता के साथ उनकी अगवानी की और पृथ्वी पर मस्तक टेककर उन्हें साष्टांग प्रणाम किया।