श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 0: श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण माहात्म्य  »  सर्ग 4: चैत्रमास में रामायण के पठन और श्रवण का माहात्म्य, कलिक नामक व्याध और उत्तङ्क मुनि की कथा  »  श्लोक 44-45h
 
 
श्लोक  0.4.44-45h 
 
 
तस्मादृतुषु सर्वेषु हितकृद्धरिपूजक:॥ ४४॥
ईप्सितं मनसा यद्यत् तदाप्नोति न संशय:।
 
 
अनुवाद
 
  इसलिए रामायण सभी ऋतुओं में कल्याणकारी है। जो व्यक्ति इससे भगवान् की आराधना करता है, वह बिना किसी शक के मनचाहा फल प्राप्त कर लेता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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