श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 0: श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण माहात्म्य  »  सर्ग 4: चैत्रमास में रामायण के पठन और श्रवण का माहात्म्य, कलिक नामक व्याध और उत्तङ्क मुनि की कथा  »  श्लोक 34-35h
 
 
श्लोक  0.4.34-35h 
 
 
उत्तङ्क उवाच
साधु साधु महाप्राज्ञ मतिस्ते विमलोज्ज्वला॥ ३४॥
यस्मात् संसारदु:खानां नाशोपायमभीप्ससि।
 
 
अनुवाद
 
  उत्तङ्क ने कहा- महामते व्याध! तुम धन्य हो, धन्य हो, तुम्हारी बुद्धि बहुत निर्मल और उज्ज्वल है; क्योंकि तुम संसार सम्बन्धी दुखों के नाश का उपाय जानना चाहते हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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