श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 0: श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण माहात्म्य  »  सर्ग 4: चैत्रमास में रामायण के पठन और श्रवण का माहात्म्य, कलिक नामक व्याध और उत्तङ्क मुनि की कथा  »  श्लोक 30-31h
 
 
श्लोक  0.4.30-31h 
 
 
मया कृतानि पापानि महान्ति सुबहूनि च॥ ३०॥
तानि सर्वाणि नष्टानि विप्रेन्द्र तव दर्शनात्।
 
 
अनुवाद
 
  उसने कहा- ‘विप्रवर! मैंने जीवन में बहुत-से बड़े-बड़े पाप किए हैं; किंतु वे सब आपके दर्शन मात्र से नष्ट हो गये।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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