श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 0: श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण माहात्म्य  »  सर्ग 2: नारद सनत्कुमार-संवाद, सुदास या सोमदत्त नामक ब्राह्मण को राक्षसत्व की प्राप्ति तथा रामायण-कथा-श्रवण द्वारा उससे उद्धार  »  श्लोक 9-10
 
 
श्लोक  0.2.9-10 
 
 
नारायणाच्युतानन्त वासुदेव जनार्दन।
यज्ञेश यज्ञपुरुष राम विष्णो नमोऽस्तु ते॥ ९॥
इत्युच्चरन् हरेर्नाम पावयन्नखिलं जगत्।
आजगाम स्तुवन् गंगां मुनिर्लोकैकपावनीम्॥ १०॥
 
 
अनुवाद
 
  वे ‘नारायण! अच्युत! अनन्त! वासुदेव! जनार्दन! यज्ञेश! यज्ञपुरुष! राम! विष्णो! आपको नमस्कार है।’ इस प्रकार भगवन्नामका उच्चारण करके सम्पूर्ण जगत् को पवित्र बनाते और एकमात्र लोकपावनी गंगाकी स्तुति करते हुए वहाँ आये॥ ९-१०॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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