श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 0: श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण माहात्म्य  »  सर्ग 2: नारद सनत्कुमार-संवाद, सुदास या सोमदत्त नामक ब्राह्मण को राक्षसत्व की प्राप्ति तथा रामायण-कथा-श्रवण द्वारा उससे उद्धार  »  श्लोक 54-55h
 
 
श्लोक  0.2.54-55h 
 
 
नामप्रावरणं विप्र रक्षति त्वां महाभयात्।
नामस्मरणमात्रेण राक्षसा अपि भो वयम्॥ ५४॥
परां शान्तिं समापन्ना महिमा कोऽच्युतस्य हि।
 
 
अनुवाद
 
  ब्रह्मन्! नामरूप कवच के द्वारा ही आप राक्षसों के महान भय से सुरक्षित रहते हैं। आपके नाम का स्मरण करने मात्र से ही राक्षसों को भी परम शांति मिल जाती है। भगवान् अच्युत की यह महिमा अद्भुत है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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