श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 0: श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण माहात्म्य  »  सर्ग 2: नारद सनत्कुमार-संवाद, सुदास या सोमदत्त नामक ब्राह्मण को राक्षसत्व की प्राप्ति तथा रामायण-कथा-श्रवण द्वारा उससे उद्धार  »  श्लोक 50-52h
 
 
श्लोक  0.2.50-52h 
 
 
तमायान्तं मुनिं दृष्ट्वा सुदासो नाम राक्षस:॥ ५०॥
प्राप्तो न: पारणेत्युक्त्वा भुजावुद्यम्य तं ययौ।
तेन कीर्तितनामानि श्रुत्वा दूरे व्यवस्थित:॥ ५१॥
अशक्तस्तं द्विजं हन्तुमिदमूचे स राक्षस:।
 
 
अनुवाद
 
  गर्ग मुनि को आते देख राक्षस सुदास बोला, "हमारा भोजन आ गया है।" यह कहते हुए उसने अपनी दोनों भुजाओं को ऊपर उठाकर मुनि की ओर बढ़ना शुरू कर दिया; लेकिन मुनि के मुख से निकल रहे भगवान के नामों को सुनकर वह दूर ही खड़ा रह गया। उन ब्रह्मर्षि को मारने में असमर्थ होकर राक्षस ने उनसे इस प्रकार कहा॥ ५०-५१ १/२॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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