श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 0: श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण माहात्म्य  »  सर्ग 2: नारद सनत्कुमार-संवाद, सुदास या सोमदत्त नामक ब्राह्मण को राक्षसत्व की प्राप्ति तथा रामायण-कथा-श्रवण द्वारा उससे उद्धार  »  श्लोक 46-47h
 
 
श्लोक  0.2.46-47h 
 
 
ऋतुत्रये स पृथिवीं शतयोजनविस्तराम्॥ ४६॥
कृत्वातिदु:खितां पश्चाद्वनान्तरमगात् पुन:।
 
 
अनुवाद
 
  छह मास में ही सौ योजन विस्तृत भूखण्ड को अत्यन्त पीडा देकर वह राक्षस पुनः किसी अन्य वन में चला गया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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