श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 0: श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण माहात्म्य  »  सर्ग 2: नारद सनत्कुमार-संवाद, सुदास या सोमदत्त नामक ब्राह्मण को राक्षसत्व की प्राप्ति तथा रामायण-कथा-श्रवण द्वारा उससे उद्धार  »  श्लोक 45-46h
 
 
श्लोक  0.2.45-46h 
 
 
अस्थिभिर्बहुभिर्विप्रा: पीतरक्तकलेवरै:॥ ४५॥
रक्तादप्रेतकैश्चैव तेनासीद् भूर्भयंकरी।
 
 
अनुवाद
 
  ब्रह्मर्षीगण ! राक्षस वृत्र द्वारा संपूर्ण पृथ्वी हड्डियों से भर गयी है। इसके रक्त में डूबे हुए लाल और पीले शरीर वाले भयंकर राक्षस सभी जगह व्याप्त हैं, जिससे पृथ्वी विकराल दिखाई दे रही है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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