वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 0: श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण माहात्म्य
»
सर्ग 2: नारद सनत्कुमार-संवाद, सुदास या सोमदत्त नामक ब्राह्मण को राक्षसत्व की प्राप्ति तथा रामायण-कथा-श्रवण द्वारा उससे उद्धार
»
श्लोक 44-45h
श्लोक
0.2.44-45h
मृगांश्च विविधांस्तत्र मनुष्यांश्च सरीसृपान्॥ ४४॥
विहगान् प्लवगांश्चैव प्रसभात्तानभक्षयत्।
अनुवाद
play_arrowpause
वहाँ वे नाना प्रकारके पशुओं, मनुष्यों, साँप-बिच्छू आदि जन्तुओं, पक्षियों और वानरों को पकड़कर बलपूर्वक खा जाते थे।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.