श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 0: श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण माहात्म्य  »  सर्ग 2: नारद सनत्कुमार-संवाद, सुदास या सोमदत्त नामक ब्राह्मण को राक्षसत्व की प्राप्ति तथा रामायण-कथा-श्रवण द्वारा उससे उद्धार  »  श्लोक 44-45h
 
 
श्लोक  0.2.44-45h 
 
 
मृगांश्च विविधांस्तत्र मनुष्यांश्च सरीसृपान्॥ ४४॥
विहगान् प्लवगांश्चैव प्रसभात्तानभक्षयत्।
 
 
अनुवाद
 
  वहाँ वे नाना प्रकारके पशुओं, मनुष्यों, साँप-बिच्छू आदि जन्तुओं, पक्षियों और वानरों को पकड़कर बलपूर्वक खा जाते थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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