श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 0: श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण माहात्म्य  »  सर्ग 2: नारद सनत्कुमार-संवाद, सुदास या सोमदत्त नामक ब्राह्मण को राक्षसत्व की प्राप्ति तथा रामायण-कथा-श्रवण द्वारा उससे उद्धार  »  श्लोक 42-43h
 
 
श्लोक  0.2.42-43h 
 
 
इत्युक्त्वा चार्थसम्पन्नो गौतम: स्वाश्रमं ययौ॥ ४२॥
विप्रोऽपि दु:खमापन्नो राक्षसीं तनुमाश्रित:।
 
 
अनुवाद
 
  पूर्णकाम गौतम ऋषि ने यह कहकर अपने आश्रम की ओर प्रस्थान किया। उधर, सोमदत्त या सुदास नाम के ब्राह्मण ने दुःख से व्याकुल होकर राक्षस के शरीर का आश्रय लिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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