श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 0: श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण माहात्म्य  »  सर्ग 2: नारद सनत्कुमार-संवाद, सुदास या सोमदत्त नामक ब्राह्मण को राक्षसत्व की प्राप्ति तथा रामायण-कथा-श्रवण द्वारा उससे उद्धार  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  0.2.36 
 
 
विप्र उवाच
भगवन् सर्वधर्मज्ञ सर्वदर्शिन् सुरेश्वर।
क्षमस्व भगवन् सर्वमपराध: कृतो मया॥ ३६॥
 
 
अनुवाद
 
  ब्राह्मण उवाच – हे सर्वधर्मज्ञ! हे सर्वदर्शी! हे सुरेश्वर! हे भगवन्! मैंने जो अपराध किए हैं, उन्हें क्षमा कीजिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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