श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 0: श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण माहात्म्य  »  सर्ग 2: नारद सनत्कुमार-संवाद, सुदास या सोमदत्त नामक ब्राह्मण को राक्षसत्व की प्राप्ति तथा रामायण-कथा-श्रवण द्वारा उससे उद्धार  »  श्लोक 20-21h
 
 
श्लोक  0.2.20-21h 
 
 
महिमानं तु यन्नाम्न: पारं गन्तुं न शक्यते॥ २०॥
मनुभिश्च मुनीन्द्रैश्च कथं तं क्षुल्लको भजेत्।
 
 
अनुवाद
 
  मनु और महान ऋषि भी जिनके नाम की महिमा को पूरी तरह से समझ नहीं पाते, वहाँ मेरे जैसा छोटा प्राणी पहुँच कैसे सकता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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