श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 0: श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण माहात्म्य  »  सर्ग 2: नारद सनत्कुमार-संवाद, सुदास या सोमदत्त नामक ब्राह्मण को राक्षसत्व की प्राप्ति तथा रामायण-कथा-श्रवण द्वारा उससे उद्धार  »  श्लोक 17-18h
 
 
श्लोक  0.2.17-18h 
 
 
यो दैत्यहन्ता नरकान्तकश्च
भुजाग्रमात्रेण च धर्मगोप्ता॥ १७॥
भूभारसंघातविनोदकामं
नमामि देवं रघुवंशदीपम्।
 
 
अनुवाद
 
  रघुकुल के सूर्य श्रीरामदेव को मेरा नमन है, जो दैत्यों के नाशक और नरक के अंत करने वाले हैं, जो अपने हाथ के संकेत भर से या अपनी भुजाओं के बल से धर्म की रक्षा करते हैं, पृथ्वी के भार को नष्ट करना जिनका मनोरंजन मात्र है और जो उस मनोरंजन की सदा अभिलाषा रखते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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