श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 0: श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण माहात्म्य  »  सर्ग 2: नारद सनत्कुमार-संवाद, सुदास या सोमदत्त नामक ब्राह्मण को राक्षसत्व की प्राप्ति तथा रामायण-कथा-श्रवण द्वारा उससे उद्धार  »  श्लोक 14-15h
 
 
श्लोक  0.2.14-15h 
 
 
येनेदमखिलं जातं जगत् स्थावरजंगमम्।
गंगा पादोद्भवा यस्य कथं स ज्ञायते हरि:॥ १४॥
अनुग्राह्योऽस्मि यदि ते तत्त्वतो वक्तुमर्हसि।
 
 
अनुवाद
 
  इसलिए मैं पूछता हूँ के जिन विश्व के सभी चराचरों की उत्पत्ति हुई है और ये गंगाजी जिनके चरणों से प्रकट हुई हैं, उन श्रीहरि का स्वरूप कैसे जाना जा सकता है? यदि आपकी हम लोगों पर कृपा है तो हमारे इस प्रश्न का सही ढंग से विश्लेषण करें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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