श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 0: श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण माहात्म्य  »  सर्ग 1: कलियुग की स्थिति, कलिकाल के मनुष्यों के उद्धार का उपाय, रामायणपाठ, उसकी महिमा, उसके श्रवण के लिये उत्तम काल आदि का वर्णन  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  0.1.4 
 
 
ऋषय ऊचु:
भगवन् सर्वमाख्यातं यत् पृष्टं विदुषा त्वया।
संसारपाशबद्धानां दु:खानि सुबहूनि च॥ ४॥
 
 
अनुवाद
 
  ऋषियों ने कहा- हे भगवान! आप ज्ञानी और विद्वान हैं। आपने हमारे सभी प्रश्नों का विस्तार से उत्तर दिया है। संसार के बंधन में बंधे जीवों के दुख अनेक हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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