श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 0: श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण माहात्म्य  »  सर्ग 1: कलियुग की स्थिति, कलिकाल के मनुष्यों के उद्धार का उपाय, रामायणपाठ, उसकी महिमा, उसके श्रवण के लिये उत्तम काल आदि का वर्णन  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  0.1.30 
 
 
यो नामजात्यादिविकल्पहीन:
परावराणां परम: पर: स्यात्।
वेदान्तवेद्य: स्वरुचा प्रकाश:
स वीक्ष्यते सर्वपुराणवेदै:॥ ३०॥
 
 
अनुवाद
 
  वेदों और पुराणों में उल्लिखित परमात्मा नाम, जाति और अन्य विकल्पों से परे है। वह कार्य-कारण के दायरे से मुक्त है और सर्वोच्च है। वेदान्त शास्त्र के माध्यम से उसे जाना जा सकता है और वह स्वयं से ही प्रकाशित होता है। इस रामायण का अध्ययन करने से भी उसी परमात्मा की प्राप्ति होती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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