श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 0: श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण माहात्म्य  »  सर्ग 1: कलियुग की स्थिति, कलिकाल के मनुष्यों के उद्धार का उपाय, रामायणपाठ, उसकी महिमा, उसके श्रवण के लिये उत्तम काल आदि का वर्णन  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  0.1.24 
 
 
धर्मार्थकाममोक्षाणां साधनं च द्विजोत्तमा:।
श्रोतव्यं च सदा भक्त्या रामायणपरामृतम्॥ २४॥
 
 
अनुवाद
 
  विप्रवर! रामायण धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रूपी फल देने वाला परम अमृत है। इसलिए इसे सदा श्रद्धा और भक्तिभाव से सुनना चाहिए।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.