महापातकयुक्तो वा युक्तो वा सर्वपातकै:।
श्रुत्वैतदार्षं दिव्यं हि काव्यं शुद्धिमवाप्नुयात्॥ २२॥
रामायणेन वर्तन्ते सुतरां ये जगद्धिता:।
त एव कृतकृत्याश्च सर्वशास्त्रार्थकोविदा:॥ २३॥
अनुवाद
महान् पापों अथवा समस्त उपपातकों से युक्त मनुष्य भी उस ऋषिप्रणीत दिव्य काव्य का श्रवण करने से पवित्र (अथवा सिद्ध) हो जाता है। संपूर्ण जगत के हित-साधन में लगे रहने वाले जो मनुष्य सदैव रामायण के अनुसार आचरण करते हैं, वही समस्त शास्त्रों के रहस्य को समझने वाले और कृतार्थ हैं।