श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 0: श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण माहात्म्य  »  सर्ग 1: कलियुग की स्थिति, कलिकाल के मनुष्यों के उद्धार का उपाय, रामायणपाठ, उसकी महिमा, उसके श्रवण के लिये उत्तम काल आदि का वर्णन  »  श्लोक 22-23
 
 
श्लोक  0.1.22-23 
 
 
महापातकयुक्तो वा युक्तो वा सर्वपातकै:।
श्रुत्वैतदार्षं दिव्यं हि काव्यं शुद्धिमवाप्नुयात्॥ २२॥
रामायणेन वर्तन्ते सुतरां ये जगद्धिता:।
त एव कृतकृत्याश्च सर्वशास्त्रार्थकोविदा:॥ २३॥
 
 
अनुवाद
 
  महान् पापों अथवा समस्त उपपातकों से युक्त मनुष्य भी उस ऋषिप्रणीत दिव्य काव्य का श्रवण करने से पवित्र (अथवा सिद्ध) हो जाता है। संपूर्ण जगत के हित-साधन में लगे रहने वाले जो मनुष्य सदैव रामायण के अनुसार आचरण करते हैं, वही समस्त शास्त्रों के रहस्य को समझने वाले और कृतार्थ हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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