श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 0: श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण माहात्म्य  »  सर्ग 1: कलियुग की स्थिति, कलिकाल के मनुष्यों के उद्धार का उपाय, रामायणपाठ, उसकी महिमा, उसके श्रवण के लिये उत्तम काल आदि का वर्णन  »  श्लोक 14-15h
 
 
श्लोक  0.1.14-15h 
 
 
घोरे कलियुगे ब्रह्मन् जनानां पापकर्मिणाम्॥ १४॥
मन:शुद्धिविहीनानां निष्कृतिश्च कथं भवेत्।
 
 
अनुवाद
 
  ब्रह्मन् ! घोर कलियुग आने पर सदा पाप करने के कारण जिनका हृदय शुद्ध नहीं होगा, उनकी मुक्ति कैसे होगी?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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