श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 0: श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण माहात्म्य  »  सर्ग 1: कलियुग की स्थिति, कलिकाल के मनुष्यों के उद्धार का उपाय, रामायणपाठ, उसकी महिमा, उसके श्रवण के लिये उत्तम काल आदि का वर्णन  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  0.1.11 
 
 
वाचालाश्च भविष्यन्ति कलौ प्रायेण योषित:।
भिक्षवश्चापि मित्रादिस्नेहसम्बन्धयन्त्रिता:॥ ११॥
 
 
अनुवाद
 
  कलियुग में नारियाँ प्रायः वाचाल और व्यर्थ की बातें करनेवाली होंगी। भिक्षा से जीवन-यापन करने वाले साधु-संत भी मित्र और संबंधियों के स्नेह और संबंधों में बंधे रहेंगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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