न च मत्स्थानि भूतानि पश्य मे योगमैश्वरम् ।
भूतभृन्न च भूतस्थो ममात्मा भूतभावन: ॥ ५ ॥
अनुवाद
फिर भी मेरे द्वारा उत्पन्न प्रत्येक वस्तु मुझमें वास नहीं करती। मेरे योग-ऐश्वर्य पर गौर करो! मैं सभी जीवों का पालनकर्ता हूँ और प्रत्येक स्थान पर व्याप्त हूँ। फिर भी मैं इस संपूर्ण अभिव्यक्ति का भाग नहीं हूँ क्योंकि मैं सृष्टि का स्रोत हूँ।