श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 9: परम गुह्य ज्ञान » श्लोक 33 |
|
| | श्लोक 9.33  | |  | | किं पुनर्ब्राह्मणा: पुण्या भक्ता राजर्षयस्तथा ।
अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम् ॥ ३३ ॥ | | अनुवाद | | फिर धर्मात्मा ब्राह्मणों, भक्तों तथा राजर्षियों के लिए तो कहना ही क्या है! इसलिये क्षणिक और दुखद संसार में आ जाने पर मेरी प्रेम भक्ति में लग जाओ। | |
| |
|
|