श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 9: परम गुह्य ज्ञान » श्लोक 32 |
|
| | श्लोक 9.32  | |  | | मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्यु: पापयोनय: ।
स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम् ॥ ३२ ॥ | | अनुवाद | | हे अर्जुन! जो लोग मुझमें शरण लेते हैं, भले ही वे नीची जाति की स्त्रियाँ, व्यापारी या श्रमिक हों, वे परम धाम को प्राप्त करते हैं। | |
| |
|
|