अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक् ।
साधुरेव स मन्तव्य: सम्यग्व्यवसितो हि स: ॥ ३० ॥
अनुवाद
यदि कोई व्यक्ति सबसे जघन्य कर्म भी करता है, लेकिन यदि वह भक्ति में पूर्णतः समर्पित रहता है, तो भी उसे एक संत माना जाना चाहिए क्योंकि वह अपने संकल्प में अटल रहता है।