समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रिय: ।
ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम् ॥ २९ ॥
अनुवाद
मैं किसी से ईर्ष्या नहीं करता और न ही किसी से पक्षपात करता हूँ। मैं सभी के साथ समान हूँ। किंतु जो भक्तिपूर्वक मेरी सेवा करता है, वो मेरा मित्र है, मुझमें स्थित है और मैं भी उसका मित्र हूँ।