तपाम्यहमहं वर्षं निगृह्णाम्युत्सृजामि च ।
अमृतं चैव मृत्युश्च सदसच्चाहमर्जुन ॥ १९ ॥
अनुवाद
हे अर्जुन! मैं ही वह हूँ जो गर्मी प्रदान करता हूँ, और मैं ही वर्षा को रोकता और बरसाता हूँ। मैं अमर हूँ, और मैं ही मृत्यु भी हूँ। आत्मा और पदार्थ (सत् और असत्), दोनों मुझमें ही हैं।