श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 9: परम गुह्य ज्ञान  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  9.18 
 
 
गतिर्भर्ता प्रभु: साक्षी निवास: शरणं सुहृत् ।
प्रभव: प्रलय: स्थानं निधानं बीजमव्ययम् ॥ १८ ॥
 
अनुवाद
 
  मैं ही लक्ष्य, पालनकर्ता, स्वामी, साक्षी और सबसे प्रिय मित्र हूँ। मैं ही सृष्टि के आरम्भ और प्रलय का कारण हूँ, सभी का आधार हूँ, आश्रय हूँ और अविनाशी बीज भी हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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