ॐ इत्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन् ।
य: प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम् ॥ १३ ॥
अनुवाद
इस योग साधना में स्थित होकर और अक्षरों के परम संयोग यानी ओंकार का उच्चारण करते हुए यदि कोई ईश्वर का ध्यान करता है और अपने शरीर का त्याग करता है, तो वह निश्चित रूप से आध्यात्मिक लोकों तक पहुँचता है।